शिमला 18 नवंबर
हिम नयन न्यूज़/साभार मनमोहन सिंह
आज कुछ बात सोशल मीडिया की कर लेते हैं। सोशल मीडिया का मतलब है कि हर व्यक्ति जो चाहे उस पर लिख के डाल दे। वह सत्य हो या झूठ का पुलिंदा इससे कोई सरोकार नहीं। लिखने वाले की कोई जवाबदेही नहीं। कैसी ही भाषा हो, कैसे ही शब्द कोई फर्क नहीं।
कई बार तो भाषा गाली गलौज तक आ जाती है। कुल मिला कर इस मीडिया में किसी भी तरह की मर्यादा रखना कतई ज़रूरी नहीं। लिखने वाला बस यह गिनता है कि उसे उसकी लेखनी पर कितने ‘लाइक्स’ मिले। इसे किसी भी तरह से पत्रकारिता की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
पत्रकारिता एक बहुत ही संजीदा काम है। अखबारों की एक बड़ी जिम्मेदारी समाज के प्रति होती है। उसमें खबरें छापने से पहले उसकी सत्यता को देखा और परखा जाता है। फिर अगर उसमें कोई गलती हो तो उसकी जिम्मेदारी तय की जाती है।
अदालतों में केस चलते हैं। पुलिस भी कार्रवाई करती है। इन अखबारों और रसालों की अपनी एक साख होती है। लोग़ इन पर भरोसा करते हैं। कुछ हालात में अखबारों से खबरें गायब तो हो जाती हैं, लेकिन तथ्यात्मक रूप से ग़लत खबरें नहीं छापी जा सकती।
ऐसा नहीं है कि अखबारें पक्षपात नहीं करतीं।
ये भी बड़े नेताओं और अफसरों के दबाव में आ जाती हैं। लेकिन फिर भी उनकी खबरों की अपनी विश्वसनीयता है। इसलिए सोशल साइट्स पर अपने विचार और सरोकार रखने वाले लोग पत्रकारों की श्रेणी में नहीं आ सकते।
ऐसे लोगों में बहुत से ब्लैक मेलर भी मिल जाते हैं। पिछले दिनों सिरमौर ज़िले में ऐसे दो लोग पकड़े गए जो खुद को पत्रकार बता कर पैसे ऐंठने का काम करते थे। ऐसे लोगों को ‘पत्रकार’ की संज्ञा देना न केवल लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का अपमान है बल्कि अपराध भी है।
गोदी मीडिया:
इसी से जुड़ा है गोदी मीडिया। यह नाम कुछ समय पहले ही अस्तित्व में आया है।
इस मीडिया का अधिकतर रिश्ता इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या टेलीविज़न से है। असल में जो लोग पत्रकारिता, साहित्य, स्टेज या फिल्मों जैसे माध्यमों से जुड़े होते हैं वे सत्ता के स्वाभाविक विपक्ष माने जाते हैं।
उनका काम सत्ता को सच्च का आइना दिखाना होता है। सत्ता किसी की हो ये लोग जनता के सरोकारों के साथ खड़े होते हैं, और होने भी चाहिए। पूरी दुनियां में ऐसा ही होता है। जहां तक बात है सरकार और तंत्र की वाह वही करने की और उसके किए कार्यों की जानकारी लोगों तक पहुंचने की, तो उसके लिए लोकसंपर्क विभाग है।
जब सारे टीवी चैनल किसी व्यक्ति विशेष की झूठी तारीफ के पुल इस हद तक बांधे कि वह देवता की श्रेणी में आ जाए तो उसे कहते हैं गोदी मीडिया। इस मीडिया का इस्तेमाल हिटलर से लेकर आज तक होता जा रहा है।
गोदी मीडिया की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह हमेशा विपक्ष से सवाल करता है। जबकि सवाल सदा सत्ता से किए जाते हैं। इसके अलावा अगर संदर्भ आज का है तो यह बात पिछली सदी की करेगा।
मीडिया अंग्रेज़ी का शब्द है।
असल में यह ‘मीडियम’ का बहुवचन है। ‘मीडियम’ शब्द का एक अर्थ माध्यम भी है। इस तरह से सोशल मीडिया का मतलब किसी बात को कहने और किसी दूसरे तक पहुंचाने माध्यम है।
वह बात कोई सूचना भी हो सकती है। खबर और सूचना में फर्क होता है। इसलिए सोशल साइट्स पर लिखने वाले सभी पत्रकार नहीं हो सकते।