लेखिका- इन्दु बाला सैनी,नालागढ
झोपड़–पट्टी से निकल कर
मयूरि पहली बार स्कूल जा रही थी,
अरे ओ मयूरिया चप्पल
तो पहनती जा….
आज
मानो मयूरि कुछ नहीं सुन रही थी, वो पीले रंग
का चोली–लंहगा पहनें, जो कि उसने
कल से पहन रखा
था
जब
से स्कूल की छोटी मैड़म
ने कहा कि तुम स्कूल
आ सकती हो पर कल
बारिश होने के कारण मयूरि
स्कूल ना जा पाई!
पर
आज बिना बालों की सुध लिये
अपने पैरों को बारिश के
पानी से बचाती मयूरि
स्कूल की और भागी
चली गई!
आधार
कार्ड न होने की
वजह से मयूरि पिछले
तीन साल से पढ़ नहीं
सकी! पर स्कूल की
छोटी मैड़म ने उस का
आधार कार्ड बनाने के लिए कई
पापड़ बेले!
आख़िर
कर आधार कार्ड बन कर आ
ही गया! आज मयूरि स्कूल
की दहलीज पार करने के लिए बेचैन
थी और बोली मैड़म
मैं अन्दर आ सकती हूँ?,
सब
बच्चे मयूरि को देख रहे
थे, और मयूरि मैड़म
को! सबने मयूरि का स्वागत–अभिवादन
किया! मयूरि मन ही मन
मैड़म का धन्यवाद करते
स्कूल के आँगन से
आकाश की और देख
कर बोली, अब मैं भी
इसी स्कूल में पढूंगी और खेलूंगी जैसे
ये बच्चे पढ़ते – खेलते आए हैं,
उसकी
आँखों में पानी तैर रहा था, फिर एक बूँद छोटी
मैड़म की आँखों से
भी निकल कर जमीन पर
पड़े बारिश के पानी में
मिल गई!