नई दिल्ली/ शिमला 23 अक्तूबर,
हिम नयन न्यूज/ ब्यूरो/ वर्मा
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के राजस्व के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए हर प्रकार की शराब पर कर लगाने के उनके अधिकार को बरकरार रखा है। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में बुधवार को 8:1 के बहुमत से फैसला सुनाया।
पीठ ने पहले के सात न्यायाधीशों की उस व्यवस्था को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन का नियंत्रण केंद्र सरकार के पास है। यह मामला वर्ष 2010 से नव न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष था।
निर्णय में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति जे. बी. पार्दीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने कहा कि औद्योगिक कार्यों में उपयोग होने वाली अल्कोहल ‘मादक स्प्रिट’ के अंतर्गत आती है। इसलिए, राज्य इसे विनियमित कर सकते हैं और उस पर कर लगा सकते हैं।
इस बहुमत के फैसले में कहा गया है कि औद्योगिक शराब और उसे तैयार करने वाले कच्चे माल सहित सभी प्रकार की शराब पर कर लगाने का अधिकार राज्यों के पास है। यह निर्णय राज्य सरकारों के राजस्व में महत्वपूर्ण वृद्धि करने की संभावना को उजागर करता है।
हालांकि, न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने अन्य सदस्यों के फैसले से असहमत रहकर अलग राय व्यक्त की। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रविष्टि 08 के तहत मादक स्प्रिट (लिकर) को केवल पीने योग्य शराब तक सीमित नहीं किया जा सकता। संविधान की सातवीं अनुसूची की 52वीं प्रविष्टि में संसद को उद्योगों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार दिया गया है।
इस फैसले से राज्यों के लिए राजस्व के नए अवसर खुलने की उम्मीद है।