चण्डीगढ़ 20 नवंबर,
हिम नयन न्यूज़/ब्यूरो /वर्मा
पीजीआई के वैज्ञानिक द्वारा रिसर्च कार्य के लिए प्रतिष्ठित पुरस्कार जीतने का समाचार मिला है।
मिली जानकारी के मुताबिक डॉ. प्रियंका ठाकुर, शोध वैज्ञानिक को “डेंगू रोगियों की गंभीरता में वायरस प्रतिकृति और साइटोकाइन स्टॉर्म की मध्यस्थता में एनएलआरपी-3 इन्फ्लेमसोम और बेक्लिन-1/एलसी3बी ऑटोफैगी जीन मार्करों की भूमिका” पर उनके मूल शोध कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रतिष्ठित ‘आईवीएस-यंग साइंटिस्ट अवार्ड 2024’ (मेडिकल) से सम्मानित किया गया है।
आईवीएस के तत्वावधान में ग्वालियर के रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (डीआरडीई) में हाल ही में आयोजित भारतीय वायरोलॉजिकल सोसायटी के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (विरोकॉन 2024) में इसे प्रदान किया गया।
डेंगू एक स्व-सीमित अर्बोवायरल संक्रमण है, जो वेक्टर एशियाई टाइगर मच्छर, एडीज एजिप्टी द्वारा फैलता है, जो सुबह और शाम के समय काटना पसंद करता है वायरस का संक्रमण तब तक जारी रहता है जब तक कि दिसंबर के पहले या दूसरे सप्ताह के बीच वायुमंडलीय तापमान 15 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं चला जाता। कम वायुमंडलीय तापमान के कारण, मच्छरों का प्रजनन न्यूनतम स्तर पर आ जाता है, जिससे डेंगू संक्रमण रुक जाता है।
यह सवाल अनुत्तरित है कि ‘स्व-सीमित डेंगू 5-10% मामलों में डेंगू रक्तस्रावी बुखार (डीएचएफ) या डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस) के रूप में जटिल डेंगू में क्यों बदल जाता है’, जहां द्वितीयक डेंगू एक पूर्वगामी कारक बना हुआ है। इसके अलावा, अध्ययन से पता चला है कि गंभीर डेंगू मामलों में एनएलआरपी-3 इन्फ्लेमसोम जीन और ऑटोफैगी जीन का महत्वपूर्ण अपरेगुलेशन था, जिसने डेंगू रोग को बढ़ाने के लिए इन्फ्लेमसोम और ऑटोफैगी जीन की भागीदारी को समझने का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे मृत्यु दर बढ़ गई।
इस प्रकार, 3 एमए जैसे एजेंटों के माध्यम से मार्गों को अवरुद्ध करने से इन-विट्रो प्रयोगों में गंभीर डेंगू रोगियों में देखे गए संभावित ‘साइटोकाइन तूफान’ को दूर करने में मदद मिली।