/मूलाधार चक्र : आध्यात्मिक जागृति का प्रथम सोपान

मूलाधार चक्र : आध्यात्मिक जागृति का प्रथम सोपान


शिमला 23 सितंबर,
हिम नयन न्यूज़ /ब्यूरो/साभार सहज योगा

मानव शरीर में स्थित चक्रों को योग और तंत्र शास्त्र में अत्यंत महत्व दिया गया है। इनमें मूलाधार चक्र को पहला एवं आधारभूत चक्र माना जाता है। यह चक्र रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में स्थित होता है और आध्यात्मिक साधना का प्रारम्भ इसी से होता है।
इस के बारे में सहज योग संस्थापिका माता निर्मला देवी ने अपने साधकों को विस्तृत जानकारी दी है और इसके आचरण और जागरण के बारे में बताया है ।

मूलाधार चक्र का प्रतीक चार पंखुड़ियों वाला कमल है, जिसके मध्य में श्री गणेश विराजमान माने जाते हैं। यह चक्र स्थिरता, सुरक्षा और आत्मविश्वास प्रदान करता है। इसकी साधना से मनुष्य जीवन के अनेक नकारात्मक संस्कारों और बाधाओं से मुक्ति पाकर आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।

मूलाधार चक्र के प्रमुख गुण

  1. आनंद और संतुलन – इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति को आनंद, सौभाग्य और अबोधिता से एकाकारिता की अनुभूति होती है। इससे जीवन में माधुर्य, संतुलन और संवेदनशीलता का विकास होता है।
  2. आत्म-नियंत्रण – अपने जीवन में आस्था और श्रद्धा जाग्रत होने से वासनाओं, लालसाओं और बुराइयों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।
  3. सत्य का बोध – सतर्कता, विवेक और सत्य के ज्ञान का संचार मूलाधार चक्र के माध्यम से होता है। यह चक्र ज्ञान और परमात्मा के प्रति श्रद्धा को दृढ़ करता है।
  4. धर्म की शक्ति – इस चक्र के जाग्रत होने पर धर्म की वास्तविक समझ विकसित होती है। अहंकार का नाश होता है और सामूहिक शुभ चेतना का बोध मिलता है।

साधना का महत्व

मूलाधार चक्र का संबंध पृथ्वी तत्व से है। अतः इसकी साधना करने वाला व्यक्ति स्थिर, आत्मविश्वासी और साहसी बनता है। साथ ही यह चक्र मनुष्य को जीवन की भौतिक और आध्यात्मिक दोनों आवश्यकताओं को संतुलित करने की शक्ति देता है।

योग और ध्यान में मूलाधार चक्र का विशेष महत्व है क्योंकि यही चक्र सम्पूर्ण ऊर्जा का आधार है। जब यह चक्र संतुलित रहता है तो मनुष्य शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहकर धर्म, सत्य और ज्ञान की ओर बढ़ता है।