दाडलाघाट घटना पर विशेष लेख
सोलन 9 अक्टूबर,
हिम नयन न्यूज़ /ब्यूरो /मनमोहन सिंह
सोचता हूं कहां है वो लोकतंत्र जिसे मैने और मेरे उम्र के लोगों ने अपने बचपन और युवा अवस्था में देखा और भोगा था। हमने राजनैतिक विरोधियों को सामाजिक कार्यक्रमों में एक साथ काम करते देखा।
हमने नेताओं की तीखी आलोचना भी देखी तो कई बार एक दूजे की तारीफ करते भी नज़र आए। लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं में एक दूजे से हल्का फुल्का मज़ाक आम बात थी।
सभी नेता चाहे वे किसी भी दल के होते एक दूसरे का सम्मान करते थे। ये गली मोहल्लों वाली भाषा मैने तो कभी किसी नेता के मुंह से नहीं सुनी।
चुनावों में हार जीत होती रहती थी पर चुनावी नतीजों के बाद नेता एक दूजे को बधाई देने उनके घर भी जाते थे। यह एक परम्परा थी।
आज की युवा पीढ़ी तो शायद इस पर विश्वास भी न करे कि सरकारें कई फैसले विपक्ष से पूछ कर भी ले लेती थीं। ऐसा नहीं कि उस समय विरोध नहीं होता था, आंदोलन नहीं होते थे या मुकदमे नहीं बनते थे पर दिलों में आज की तरह कोई कड़वाहट या दुश्मनी का भाव नहीं होता था।
सामाजिक रिश्ते बने रहते थे।
नेताओं की आलोचना उनके सामने होती थी, उनके कार्टून बनते थे पर वो नेता उनका सहज तरीके से जवाब देते और कार्टून का तो खुद भी मज़ा लेते।
मुझे अच्छी तरह याद है कि देश के सबसे मशहूर कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण ने पंडित जवाहर लाल नेहरू पर बनाए अपने कार्टून्स की प्रदर्शनी लगाई थी तो उसका उद्घाटन खुद पंडित नेहरू ने किया था।

नेहरू जी ने लक्ष्मण से पूछा भी था कि ‘क्या मैं ऐसा दिखता हूं’ यह कह कर वे खुद भी हंस पड़े थे। अब तो कार्टून बनाने पर कार्टूनिस्ट्स को जेल हो जाती है। नेताओं में इतनी असुरक्षा और हीन भावना कहां से आ गई?
अभी अर्की में स्कूल की छात्राओं ने मुख्यमंत्री के सामने चार नारे क्या लगा दिए उन पर पुलिस ने एफ आई आर दर्ज कर ली।
क्या हमारे नेताओं में इतनी भी सहनशीलता नहीं रही। यहां तो सरकार के विरोध को देशद्रोह कहा जाने लगा है।
हमारे नेता यह भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में सभी आवाज़ उठाने का हक है। “यहां तो सरकारें आती जाती रहेंगी, पार्टियां टूटती बनती रहेंगी, पर देश सुरक्षित रहना चाहिए” ये अल्फ़ाज़ हैं देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के।
इसका सीधा अर्थ है कि राजनैतिक दलों और नेताओं को वो काम करने चाहिए जो देश हित में हों और जिसकी मिसाल आने वाली नस्लें दें।
हमारी आने वाली पीढ़ी हमारी क्या मिसाल देंगी? ज़रा इस पर ग़ौर करें। इतिहास किसी को माफ नहीं करता। हमें भी नहीं करेगा।