सोलन 8 अक्टूबर,
हिम नयन न्यूज/ब्यूरो/वर्मा
सभी नदियों का परबत से निकलना भी ज़रूरी है
कभी मौसम ये पतझड़ का बदलना भी ज़रूरी है
बुलंदी किस की किस्मत में भला रहती हमेशा ही
उगे सूरज सवेरे जो वो ढलना भी ज़रूरी है
लगे जब चोट इस दिल पे किसी की बेवफाई से
तभी आंखों से आंसू का छलकना भी ज़रूरी है
कहें मुझ से सभी यारो मुहब्बत दर्द देती है
मगर इस दर्द का अहसास करना भी ज़रूरी है
करें जब बात ये नेता हमें खुशहाल करने की
हमें उसमें छुपे जुमले समझना भी ज़रूरी है
कहो माशूक से अपनी खफ़ा ना हो कभी तुमसे
मुहब्बत है अगर पक्की तो लड़ना भी ज़रूरी है
मिटाने के लिए तो प्यास धरती की सदा ‘दानिश’
गगन से एक दिन पानी बरसना भी ज़रूरी है
— मनमोहन सिंह ‘दानिश’