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कहानी-किताबों का कर्ज

कैसे चुका पायेगी इस जन्म में इन किताबों का कर्ज ?

लेखिका – इंदु बाला सैनी

दीपावली चली गई उस के साथ ही चली गई इंदिरा की कुछ किताबें!इंदिरा के पास अपनी किताबें आज भी किसी जमापूंजी की तरह घर के किसी कोने में सहेज कर रखी गई थी! किताबें ही जरिया रही इंदिरा के आगे बढ़ने का शिक्षा पूरी करने के लिए कई स्थान आज इन्हीं किताबों के कारण घूम चुकी थी।

किताबें हाॅस्टल के कमरे के बिस्तर पर भी साथ रहती, इंदिरा के साथ रात के 2 बजे भी उठ जाती,यूँही पढ़ते-पढ़ते कभी इन्हें जब नींद आती तो उस के मुंह पर झपकी ले लेती।

माँ हर बार दीवाली पर कहती कि इन किताबों को कब तक रखेगी? क्या दहेज में ले कर जायेगी ये किताबें?

आय साल दीवाली पर इंदिरा की किताबें बेचे जाने की धमकी मिल जाती।ठीक इस साल भी उसकी किताबें मुश्किल में थी!

इस बार दीवाली से कुछ दिन पहले ऊपर के स्टोर रूम की सफ़ाई की तो ना चाहते हुए भी कुछ पुरानी किताबें बाहर निकाल कर रखनी पड़ी जो की खराब हो गयी थी उन पर कुछ बूंदे बरसात के पानी की पड़ गई और कुछ बूंदे इंदिरा के आँसुओं की ,जो उस वख्त पड़ी जब वो अतीत का पन्ना पन्ना टटोल रही थी गुजरे ब्सरे वख्त को महसूस कर रही थी!

कुछ किताबों पर लिख रखे थे उसने अपने लक्ष्य , समय – प्रबंधन, तो कन्ही कुछ पन्नो पर लिख रखी थी मजाक , हँसी-ठिठोली भरी बात जो अक्सर तब लिखी जाती थी जब अध्यापक पढ़ा रहे होते थे, और वो उन सब बातों को ,अध्यापक की नजरों से बचते बचाते, इशारों – इशारों में सब को समझाते!और खूब हँसते! पुरानी बातों को पढ़ आज हंसी आई पर साथ में सामने से हसने वाला कोई नही था!

किताबें दूर तक ले आई थी,पर आज इन किताबों को अपने से दूर करने का मन नही था, वख्त बदल गया था, पर किताबें आज भी अपने वचनों पर अडोल-अटल थी!

सफ़ाई करते- करते न जाने मन क्यूँ बेचैन था की जिंदगी से कुछ छूट रहा था, वो जिसे इंदिरा कभी अलग नहीं करना चाहती थी! फिर उन पुरानी किताबों को वो भीगी पलकों से ,अपने कलेजे पर पत्थर धर , एक कोने में किताबें बिकने के लिए रख रही थी, बची हुई किताबें उसने साफ- सँवार कर अंदर जमा कर दी,और मन ही मन सोच रही थी जिस को भी सादे कागज़ का श्रृंगार रास आ गया फ़िर उसे किसी गहने – जेवर से बनावटी सजवाट की जरूरत नहीं रहती !

इन किताबों ने ज्ञान के पंख दिए जो इंदिरा के मन को आकाश में उड़ने को बाध्य कर रहे थे और कह रहे थे कि तु कैसे चुका पायेगी इस जन्म में इन किताबों का कर्ज!

आज भारी मन से भगवान से एक ही दुआ मांगी की इस काग़ज -किताब, कलम का साथ कफ़न तक यूँही बरकरार रहे!